*💥कैबिनेट मंत्री, महाराष्ट्र सरकार, श्री जय कुमार जीतेन्द्र सिंह रावल जी का सपरिवार परमार्थ निकेतन में आगमन*
*🌸बाणगंगा के पावन तट और सागर के तटों पर मुम्बई में आरती शुरू करने पर हुई चर्चा*
ऋषिकेश, 23 मई। महाराष्ट्र सरकार में कैबिनेट मंत्री श्री जय कुमार जीतेन्द्र सिंह रावल जी का उनकी धर्मपत्नी श्रीमती सुभद्रा कुमारी रावल और पुत्री सुश्री वेदान्तेश्वरी रावल के साथ परमार्थ निकेतन, ऋषिकेश में आगमन हुआ। इस अवसर पर उन्होंने परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी से भेंट कर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया।
परिवार संग आध्यात्मिक यात्रा पर आये श्री जय कुमार रावल जी से स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने जल संरक्षण, जल के प्रति जागरूकता और बाणगंगा, समुद्र व नदी तटों की महत्ता को जन-जन तक पहुँचाना हेतु आरती शुरू करने हेतु विशेष रूप से चर्चा की।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि मुंबई में समुद्र तट एवं बाणगंगा जैसे पवित्र जल स्थलों पर आरती के शुभारंभ से जनजागरण, जल संरक्षण और पर्यावरण के क्षेत्र में एक महान क्रांति हो सकती है। बाणगंगा और समुद्र तटों पर आरती आरंभ करने से लोगों में जलस्रोतों के प्रति आस्था और जागरूकता दोनों ही बढ़ेगी।
स्वामी जी ने कहा कि सागर सेवा संकल्प के रूप में हम एक शुरूआत कर सकते हैं। भारत के समुद्र तट सिर्फ आर्थिक दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि सांस्कृतिक, धार्मिक और पर्यावरणीय दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। जब हम तटों पर आरती करेंगे, तो यह एक संदेश होगा कि हम जल को पूज्य मानते हैं उसे प्रदूषित नहीं, पवित्र रखना हमारा कर्तव्य है।
बाणगंगा, जो मुंबई के मालाबार हिल में स्थित एक पवित्र तीर्थ स्थल है, सदियों से साधु-संतों और श्रद्धालुओं के लिए तप और स्नान का पवित्र स्थान रहा है परंतु आज शहरीकरण और जनसंख्या के दबाव में इसके जल की पवित्रता खतरे में है। यदि यहां नियमित रूप से आरती और जनजागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जाएं, तो न केवल इसकी आध्यात्मिक गरिमा पुनः स्थापित होगी, बल्कि स्थानीय समुदाय भी इसके संरक्षण के लिए प्रेरित होगा।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा, जहाँ श्रद्धा है, वहाँ सुरक्षा है। समुद्र तटों पर आरती पर्यावरणीय चेतना का प्रकाश भी है। हम जो आरती करते हैं, वह केवल दीपक की नहीं होती, वह संकल्प की आरती भी होती है, जल को बचाने, प्रदूषण को रोकने, और समुद्र के इकोसिस्टम को सुरक्षित रखने की एक प्रेरणा होती है।
मुंबई जैसे महानगर में जहां समुद्र तट पर्यटन, मत्स्य व्यापार और रोजगार का बड़ा माध्यम हैं, वहां की सफाई और सुरक्षा देश की इकोनॉमी और इकोलॉजी दोनों को प्रभावित करती है। आरती जैसे आयोजन पर्यावरण संरक्षण को एक जनांदोलन का स्वरूप दे सकते हैं।
स्वामी जी ने कहा कि जब हमारे देश के युवा प्रकृति की रक्षा का संकल्प लें और जलस्रोतों को पवित्र मान कर उनका संरक्षण करे तो भारत वास्तव में पुनः ऋषियों के संकल्प का भारत बन जाएगा।
बाणगंगा का संबंध भगवान श्रीराम जी से जुड़ा है। शास्त्रों के अनुसार, जब श्रीराम जी, सीता जी की खोज में दक्षिण की ओर बढ़ रहे थे, तब उन्होंने वर्तमान मुंबई के इस क्षेत्र में विश्राम किया। यहाँ लक्ष्मण जी को प्यास लगी, परंतु पीने के लिए जल उपलब्ध नहीं था। तब श्रीराम ने अपने धनुष के बाण से धरती से गंगा प्रकट की, उसी बाण से प्रकट हुई गंगा को ही “बाणगंगा” कहा जाता है।
ज्ञात हो कि बाणगंगा तालाब का वर्तमान स्वरूप 12वीं शताब्दी में बना, जब सिल्हारा वंश के शासनकाल में एक प्रमुख गौड़ ब्राह्मण मंत्री लक्ष्मण प्रभु जी ने इसका पुनर्निर्माण करवाया। बाद में 1715 में मुंबई के प्रतिष्ठित गौड़ सरस्वत ब्राह्मण समुदाय द्वारा वॉकेश्वर मंदिर और बाणगंगा तालाब की संरचना को और अधिक विस्तार दिया गया।
माननीय कैबिनेट मंत्री श्री जयकुमार रावल जी ने कहा कि महाराष्ट्र सरकार इकोनॉमी और इकोलॉजी दोनों के संतुलित विकास के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा कि बाणगंगा जैसी प्राचीन जलधरोहरें हमारी सांस्कृतिक विरासत हैं, जो हमें जल, जीवन और परंपरा की गहराई का बोध कराती हैं। इनका संरक्षण पर्यावरणीय दृष्टि से तो जरूरी है साथ ही भावी पीढ़ियों को हमारी परंपराओं से जोड़ने का सशक्त माध्यम भी है। सरकार ऐसे पवित्र स्थलों के पुनरोद्धार और जागरूकता अभियान को प्राथमिकता दे रही है।
स्वामी जी ने पूरे रावल परिवार को हिमालय की हरित भेंट रूद्राक्ष का पौधा भेंट किया।
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