जनपद की विभिन्न सहकारी समितियों के माध्यम से स्थानीय पशुपालकों को सीधा लाभ मिल रहा: जिलाधिकारी

पिथौरागढ़।जिलाधिकारी विनोद गोस्वामी की अध्यक्षता में उत्तराखंड सरकार और भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) के बीच हुए महत्वपूर्ण समझौता ज्ञापन (एमओयू) के तहत आईटीबीपी की पिथौरागढ़ में तैनात 3 वाहिनी की 14 पोस्टों लिए स्थानीय उत्पादों, जैसे कि बकरी/भेड़ का मास, चिकन, अंडे और मछली, आदि की आपूर्ति किए जाने के सम्बन्ध में समीक्षा बैठक कलेक्ट्रेट में संपन्न हुई।

बैठक में जिलाधिकारी ने कहा कि इस समझौते का मुख्य उद्देश्य वाइब्रेंट विलेज योजना के तहत आईटीबीपी को स्थानीय उत्पादों की आपूर्ति सुनिश्चित करना है, यह सीमांत क्षेत्रों में आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देने और पलायन को रोकने में मदद करने हेतु शुरू की गई है, इस समझौते से जनपद की विभिन्न सहकारी समितियों के माध्यम से स्थानीय पशुपालकों को सीधा लाभ मिल रहा है। इनमें प्रमुख रूप से महिलाएं शामिल है, भेड़-बकरी पालकों, कुक्कुट और मछली आपूर्ति से पशुपालकों व मछली पालकों को इसका लाभ मिल रहा है

उन्होंने कहा कि यह समझौता सीमांत क्षेत्रों में आर्थिक विकास को बढ़ावा देने और स्थानीय लोगों को रोजगार के अवसर प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। उन्होंने पशुपालन विभाग वह मत्स्य विभाग के अधिकारियों को निर्देशित किया कि समय-समय पर उक्त खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता को जांचा जाए जिससे आईटीबीपी के जवानों को स्थानीय और गुणवत्तापूर्ण खाद्य सामग्री उपलब्ध हो सके। उन्होंने कहा कि कम सप्लाई वाले क्षेत्रों को केंद्र में लाकर उक्त क्षेत्र में सप्लाई चेन मजबूत करने की आवश्यकता है।

तत्पश्चात जिलाधिकारी द्वारा पशुपालन व मत्स्य विभाग के अधिकारियों के साथ खाद्य पदार्थों को आइटीबीपी पोस्टों तक पहुंचने में आ रही समस्याओं पर चर्चा की गई, संबंधित अधिकारियों द्वारा जिलाधिकारी को बताया गया कि खाद्य पदार्थों को आईटीबीपी के दूरस्थ पोस्टों तक पहुंचने में यात्रा व्यय काफी अधिक आता है उन्होंने कहा कि यदि आइटीबीपी एक एरिया की डिमांड एक साथ ही भेज दे तो यात्रा व्यय में कमी आ सकती है , इस पर जिलाधिकारी ने सुझाव दिया कि एक क्षेत्र में स्थित सभी पोस्टों द्वारा यदि एक ही साथ आर्डर दिया जाए तो इससे यात्रा व्यय में कमी आ सकती है।

अधिकारियों द्वारा कुक्कुट की सप्लाई हेतु प्रतीक्षा अवधि को कम करने की बात कही गई, उन्होंने बताया कि अधिक समयावधी होने से कुक्कुट का वजन कम हो जाता है।

आईटीबीपी के अधिकारियों द्वारा सुझाव दिया गया कि उच्च हिमालयी क्षेत्रों में मटन की उपलब्धता हेतु यदि किसी स्थानीय क्षेत्र के ग्रामीणों द्वारा की जाए एवं उन्हें सहकारी समितियां से जोड़ा जाए तो इससे खाद्य यात्रा व्यय में काफी कमी आ सकती है।

पशुपालन व मत्स्य विभाग के अधिकारियों द्वारा जिलाधिकारी को इन खाद्य पदार्थ को आइटीबीपी पोस्टों तक पहुंचाने हेतु वाहन उपलब्ध कराने का आग्रह किया गया जिस पर जिलाधिकारी ने इस योजना की सफलता को देखते हुए उक्त हेतु धनराशि आवंटित करने एवं संबंधित विभागीय अधिकारियों को जिला योजना के तहत धनराशि उपलब्ध करने का आश्वासन दिया।

उन्होंने किसानों को नुकसान से बचने एवं यदि कोई बीमारी पशुओं में फैलने की स्थिति में जो कदम उठाए जाते हैं वो प्रावधानो पर संबंधित अधिकारियों के साथ चर्चा की। जिलाधिकारी ने कहा की मीट वेस्ट तथा खाद्य पदार्थों के वेस्ट को व्यवस्थित रूप से डिस्पोज किया जाए जिससे पर्यावरण एवं पारिस्थितिक तंत्र को नुकसान न पहुंचे।

सहायक निदेशक मत्स्य डॉ चलाल द्वारा जिलाधिकारी को बताया गया कि इस योजना में छोटे-छोटे किसानों को भी जोड़ा गया है जिससे डिमांड अधिक होने के कारण सप्लाई की जा सके, उन्होंने बताया कि आईटीबीपी को गुणवत्तापूर्ण हिमालय ट्राउट को कम समय में ही आपूर्ति की जा रही है। उन्होंने हिमालय ट्राउट के बारे में बताते हुए कहा कि इसकी वजह से मत्स्य से जुड़े लोगों की सीमांत क्षेत्र की आर्थिक स्थिति में भी सुधार आया है और 2025-26 वित्तीय वर्ष में और अधिक लोगों को जोड़ने के लिए एकंपलान तैयार किया गया है।

जिलाधिकारी ने संबंधित विभाग के अधिकारियों को निर्देशित किया कि वे प्रत्येक ब्लाक, न्याय पंचायतवार इस योजना से लाभान्वित लोगों की संख्या एवं उनकी आर्थिकी में आई सुधार के बारे में आगामी बैठक में एक प्रेजेंटेशन के माध्यम से अवगत कराए।

इस दौरान सहायक निदेशक मत्स्य डॉ रमेश चलाल, पशुपालन विभाग के अधिकारियों सहित तीन आइटीबीपी बटालियन के अधिकारी उपस्थित रहे।

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