परमार्थ निकेतन पधारे भारत के 14 वें राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद जी

*💥परमार्थ निकेतन पधारे भारत के 14 वें राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद जी*

*✨परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी से हुई दिव्य भेंटवार्ता*

*🌺श्रीराम जी और गांधी जी के आदर्शों पर हुई अद्भुत चर्चा*

*🌸संस्कार, संस्कृति, गांधी जी और श्रीराम जी के आदर्शों को समर्पित भावपूर्ण क्षण*

ऋषिकेश, 27 मई। परमार्थ निकेतन में आज का दिन अत्यंत ऐतिहासिक, प्रेरणादायक और भावनाओं से ओतप्रोत रहा। भारत के 14वें राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद जी, श्रीमती सविता कोविंद जी और बेटी स्वाति कोविंद जी परमार्थ निकेतन पधारे। परमार्थ गुरूकुल के ऋषिकुमारों ने पुष्पवर्षा, शंखध्वनि और वेदमंत्रों से अभिनन्दन किया।

परमार्थ निकेतन की दिव्यता, शांति और आध्यात्मिक ऊर्जा से ओतप्रोत इस वातावरण में श्री कोविंद जी का सपरिवार आगमन भारतीय संस्कृति, अध्यात्म और सनातन मूल्यों के प्रति उनकी गहरी श्रद्धा और प्रतिबद्धता का जीवंत प्रमाण है।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी और श्री रामनाथ कोविंद जी की भेंटवार्ता अत्यंत भावपूर्ण हुई। दोनों महान व्यक्तित्वों के बीच महात्मा गांधी जी के आदर्शों, भारतीय संस्कृति, मूल्यों व संस्कारों पर गहन चर्चा हुई।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि श्री रामनाथ कोविंद जी का जीवन स्वयं एक प्रेरणा है, एक साधारण ग्रामीण परिवेश से निकलकर भारत के सर्वोच्च संवैधानिक पद तक की यात्रा अत्यंत सादगी, समर्पण और मूल्यों से युक्त है।

इस अवसर पर स्वामी जी ने कहा कि भारतीयता, केवल एक भूगोल नहीं, बल्कि एक भाव है, जिसमें विविधता में एकता, संस्कृति में श्रद्धा और जीवन में सह-अस्तित्व की भावना रची-बसी है। यह वह भूमि है जहाँ वेदों से लेकर स्वामी विवेकानन्द जी तक, श्री राम जी से लेकर गांधी जी तक, हर विचार में मानवता का कल्याण समाहित है और सेवा तो भारतीय संस्कृति का मूल तत्व है। यहाँ जीवन को यज्ञ माना गया है, जिसमें दूसरों के लिए समर्पण ही आहुति है।

स्वामी जी ने कहा कि समरसता, वह चेतना है जो समाज के हर वर्ग, हर व्यक्ति को समान दृष्टि से देखने की प्रेरणा देती है। समरसता का अर्थ केवल समानता नहीं, बल्कि सम्मान के साथ सह-अस्तित्व है। महात्मा गांधी ने अपने रामराज्य के विचार में इसी समरसता की कल्पना की थी, जहाँ अंतिम पंक्ति में खड़ा व्यक्ति भी आत्मसम्मान के साथ जीवन जी सके।

श्री रामनाथ कोविंद जी ने कहा कि गांधी जी के लिए ‘रामराज्य’ केवल धार्मिक अवधारणा नहीं, बल्कि एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था थी, जिसमें कोई भूखा न हो, कोई शोषित न हो, और हर व्यक्ति को सम्मान, न्याय व अधिकार मिले। यह संकल्पना आज के युग में भी उतनी ही आवश्यक है, जितनी स्वतंत्रता संग्राम के समय थी।

श्री कोविंद जी ने पूज्य स्वामी जी द्वारा संचालित गंगा एक्शन परिवार, ग्लोबल इंटरफेथ वॉश एलायंस, और स्वच्छता व जल संरक्षण अभियानों की सराहना करते हुये कहा कि पर्यावरण संरक्षण आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है और परमार्थ निकेतन द्वारा इस दिशा में किया जा रहा कार्य वास्तव में वैश्विक प्रेरणा है। परमार्थ निकेतन जैसे स्थलों पर आकर मन को शांति और संतोष मिलता है। यह स्थान आध्यात्मिकता के साथ भारतीयता, मानवता और सेवा भावना का जीवंत उदाहरण है। यहाँ की दिव्य गंगा आरती, आध्यात्मिक साधना, और सेवा के संकल्प वैश्विक स्तर पर भारत की संस्कृति को प्रकट करते हैं।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने माननीय श्री रामनाथ कोविंद जी को रूद्राक्ष का पौधा भंेट कर माँ गंगा जी के पावन तट पर उनका अभिनन्दन किया।

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